भारत में मौजूद जनजातीय मामलों से संबंध रखने वाला मंत्रालय ने अब देश में एक नये उद्यम की स्थापना की है, जिसका नाम वन धन विकास केंद्र रखा गया है। इसका लाभ मुख्यतः आदिवासियों को दिया जायेगा, और यहाँ आदिवासियों को प्रशिक्षण भी दिया जायेगा। यहाँ इस केंद्र में इन्हें कौशल विकास और अन्य औद्योगिक क्षेत्रोँ से संबंधित प्रशिक्षण दिया जायेगा। इस प्रकार का पहले वन धन केंद्र की स्थापना छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में की गयी है।
वन धन विकास केंद्र योजना :
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आदिवासी समाज के आर्थिक विकास एवं वन धन का समुचित उपयोग करने में जनजातीय समुदाय की क्षमता का उपयोग देश के विकास हेतु करने के उद्देश्य से वन धन विकास केंद्र योजना का संचालन किया गया है। प्रधानमंत्री द्वारा आंबेडकर जयंती के शुभावसर पर 14 अप्रैल 2018 को योजना के तहत पहला वन धन विकास केंद्र की स्थापना छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में स्थापित करने की घोषणा की गयी है। इस योजना का संचालन जन जातीय विकास मंत्रालय और (TRIFED) ट्राइबल कोआपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन आफ इंडिया के देख -रेख में किया जायगा। यह योजना आदिवासी जनजातीय वर्ग के युवाओं के कौशल विकास हेतु शुरू किया गया है। आइये जाने इस लेख के माध्यम से इस योजना की पूरी जानकारी।
लांच डिटेल :
सरकार ने इस उद्योग के संबंध में अप्रैल के पहले सप्ताह में जानकारी दी थी। इसके अलावा मंत्रालय ने यह भी कहा है की सर्वप्रथम इस योजना के संबंध में परीक्षण किये जायेंगे और इसके सफल होने पर ही इसे जनजातीय मंत्रालय के द्वारा इसे अधिकारिक तौर पर स्टार्ट किया जायेगा।
वन धन विकास केंद्र योजना का उद्देश्य :
योजना के तहत पहला केंद्र छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में स्थापित किया गया है। इस केंद्र में जनजाति वर्ग के 300 युवाओं को कौशल विकास की ट्रेनिंग दिए जाने का प्रावधान किया गया है। योजना के अंतर्गत जनजातीय युवाओं को इमली, महुआ भंडारण, कलौंजी की साफ़-सफाई एवं पैकेजिंग की ट्रेनिंग देने के साथ हीं प्राथमिक प्रसंस्करण इकाई एवं फसलों के मूल्य वर्धन से सम्बंधित जानकारी दी जायेगी। जिससे उनके कार्यकुशलता में वृद्धि होगी और वन धन एवं आदिवासी जन धन का देश के विकास में पूर्ण रूप से उपयोग किया जा सकेगा।
योजना का क्रियान्वयन :
- वन धन केंद्र योजना के तहत आदिवासी युवाओं का प्रशिक्षण हेतु चयन स्वयं सहायता समूह (SHG) की सहायता से ट्राईफेड (TRIFED) करेगा।
- वन धन योजना के तहत देश भर के आदिवासी जिलों में कुल मिलाकर 3 हज़ार वन धन केंद्र की स्थापना किया जाएगा।
- प्रत्येक केंद्र में 10 जन जातीय वर्ग के स्वयं सहायता समूह गठित किये जायेगे प्रत्येक समूह में 30 सदस्य शामिल होंगे।
- स्वयं सहायता समूह के नेतृत्व समूह के सदस्य अपने उत्पादों की बिक्री अपने राज्य में और राज्य के बाहर भी करेंगे। जिसके लिए प्रशिक्षण एवं तकनिकी सहायता ट्राईफेड द्वारा मुहैया करवाया जाएगा।
योजना से लाभ :
- इस योजना के तहत वन धन विकास केंद्र में जनजातीय वर्ग के युवाओं को वन धन ईमली,महुआ के फूल के भंडारण , कलौंजी की सफाई एवं अन्य माइनर फारेस्ट प्रोडक्ट्स जैसे शहद, ब्रशवुड, केन्स,टसर तथा आदिवासी क्षेत्र में पायी जाने वाली अनेक प्रकार की जड़ी बूटियों के रख-रखाव की ट्रेनिंग एवं मार्केटिंग से सम्बंधित प्रशिक्षण दिया जाएगा। जिससे जनजातीय वर्ग के युवाओं की कार्यकुशलता में वृद्धि होगी।
- आदिवासी क्षेत्र का विकास होगा एवं जनजातीय वर्ग की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
- आदिवासी जनजातीय वर्ग की कार्य क्षमता का देश के विकास में योगदान प्राप्त किया जा सकेगा।
विकास केंद्र के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी :
- वन धन केंद्र के इस पहले मॉडल में 300 लाभार्थियों को प्रशिक्षण दिया जायेगा। इसमे मुख्यत 43 लाख 38 हजार रुपय खर्च किये जायेंगे और इसका उपयोग ट्रैनिंग, उपकरणों , अन्य प्राथमिक खर्चो और वन केंद्र की बिल्डिंग बनाने में किया जायेगा।
- इस केन्द्र में टैमारिंड ईंट बनाने, महुआ फूलों के संरक्षण की सुविधा और चिरोंजी सफाई और पैकेजिंग के लिए प्रोसेसिंग सुविधा आदि का प्रशिक्षण दिया जायेगा।
- इस योजना के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी ट्राईफ़ेड ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सीजीएमएफपी फेडरेशन और कलेक्टर को सौपी है।
यह योजना कैसे काम करेगी :
- वैल्यू एडिशन फैसिलिटी : वैल्यू एडिशन से तात्पर्य आदिवासी क्षेत्र में उपलब्ध सामग्री में कुछ एडिशन कर उसके मूल्य में वृद्धि करने से है। इस स्कीम के अंतर्गत तीन चरण में वस्तुओं के मूल्य वृद्धि की जाएगी। इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासियों की आय में वृद्धि करना है।
- इस स्कीम के अंतर्गत ग्रास रूट लेवल की खरीदी कार्यान्वयन समितियों से जुड़े एसएचजी के माध्यम से की जाएगी।
- यहाँ लाभार्थियों को वस्तुओं के प्राथमिक उपचार और मूल्य वृद्धि के लिए उचित रूप से प्रशिक्षित किया जायेगा और फिर इनके समूह बनाये जायेंगे, ताकि वे अपने स्टॉक को व्यापार योग्य मात्रा में एकत्र कर सकें और वन धन विकास केंद्र में प्राथमिक संसाधन की सुविधा के साथ जोड़ सकें।
- प्राथमिक उपचार के बाद तैयार सामान एसएचजी के द्वारा स्टेट इम्प्लीमेंटिंग एजेंसीज को भेजा जायेगा या वे चाहे तो इसे डायरेक्ट व्यापारी को बेच सकते है।
- जिला स्तर पर सेकंड्री लेवल वैल्यू एडिशन फैसिलिटी और राज्य स्तर पर तृतीय लेवल वैल्यू एडिशन फैसिलिटी के लिए बड़े उद्योगपति पीपीपी मॉडल के अंतर्गत शामिल होंगे।
- यह एक तरह से निजी उद्यमियों द्वारा संचालित लार्ज वैल्यू एडिशन हब होंगे जिसके द्वारा आदिवासियों को प्रशिक्षित कर लाभ दिया जायेगा।
लघु वन उत्पाद :
- माइनर फॉरेस्ट प्रोडक्ट्स (एमएफपी) में निम्न को शामिल किया गया है और इसमें बांस, ब्रशवुड, स्टंप, कैन्स, टसर, कोकून, शहद, मोक्स, लैक, तेंदु / केंडू पत्ते, औषधीय पौधों और जड़ी बूटी, जड़,आदि शामिल है।
- एमएफपी वन क्षेत्र में जनजातीय लोगों के लिए जीवन चलाने का प्रमुख स्रोत है, लगभग 100 मिलियन वन निवासियों को भोजन, आश्रय, दवाओं और पैसों की पूर्ति के लिए एमएफपी पर ही निर्भर रहना होता है।
केंद्र का सिलेक्शन और शुरुआत :
- इस केंद्र की शुरुआत 10 अप्रैल 2018 से की जा चुकी है। शुरुआत में यह केंद्र जिले की पंचायत बिल्डिंग में चालू किया जायेगा। और वन धन विकास केंद्र की स्थापना के बाद इसे वहाँ शिफ्ट कर दिया जायेगा।
- इसमे प्रशिक्षण के लिए शुरुआत में 300 लोगों का चयन किया जायेगा। यह चयन की प्रक्रिया ट्रिफ़ेड द्वारा की जाएगी। इनके द्वारा चयन के बाद चयनित लाभार्थी इस केंद्र में मौजूद सुविधाओं का लाभ ले सकते है।
वन धन केंद्र का महत्व :
- वन धन विकास केंद्र का मुख्य उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रो का आर्थिक विकास करना है। इसके लिए उन्हें वन्य क्षेत्रों में उपलब्ध माइनर फूड प्रोडक्ट को इकट्ठा कर उसके द्वारा अपनी जीविका चलाने और अधिक लाभ कमाने का प्रशिक्षण दिया जायेगा।
- आजीविका का स्त्रोत : माइनर फारेस्ट प्रोडक्ट्स आदिवासियों को दुर्बल मौसम में आजीविका का साधन प्रदान करते है। इन प्रोडक्ट्स के जरिये आदिवासियों की वार्षिक आय का 20 से 40 प्रतिशत तक का खर्चा निकला जाता है। परंतु इसपर वे अपना बहुत अधिक समय व्यर्थ गवाते है।
- महिला सशक्तिकरण : यह फारेस्ट प्रोडक्ट आदिवासी महिलाओं को वित्तीय मजबूती प्रदान करते है, क्योंकि इनमे से अधिक्तर चीजें महिलाओं के ही द्वारा एकत्रित करके बेची जाती है।
- इन प्रोडक्ट्स के द्वारा आदिवासियों के लिए वर्ष में अधिक काम उपलब्ध होता है। जिससे वे वर्ष भर व्यस्त रहते है और अपनी जीविका आसानी से चलाते है।
यह भारत का पहला वन केंद्र है जो इस तरह की सुविधा उपलब्ध करवा रहा है। इस तरह के केन्द्रों को जल्द ही अधिक संख्या में संचालित किया जायेगा ताकि वे देश में मौजूद प्रतिस्पर्धा में शामिल हो सके और योग्य बन सके।